मध्य प्रदेश की राजीनति में नया युग शुरू होने वाला है, सिंधिया युवाओ की पंसद है, ऐसे में ग्वालियर चंबल संभाग सहित अन्य बड़े नेताओ का ग्राफ कम होने से बिगड़ सकते है हालात
नवलोक समाचार. अपनी 19 साल की राजनीति में कांग्रेस से राजनैतिक दांव पेंच सीख चुके सिंधिया अब मध्य प्रदेश भाजपा कोटे से राज्य सभा सांसद बनने जा रहे है, प्राथमिक सदसयाता लेने के बाद ही उनके नाम पर मुहर भी लग चुकी है. लेकिन दिग्गजो के सामने अब कई सवाल भी खड़े होने लगे है. शिवराज मध्य प्रदेश की राजनीति से हटना नही चाहते अपना वर्चस्व बनाये रखना चाहते है, लेकिन आने वाला समय सिंधिया का होगा या उनके धुर विरोधी रहे भाजपा नेता अपनी खिसकती जमीन को बचाने के लिए अलग राजनीति शुरू करेंगे.
मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम ज्योतिरादित्य सिधिया का माना जाता है, लेकिन लोकसभा चुनाव हारने के बाद से खुद को उपेक्षित महशूस करने वाले सिंधिया अब विचारधारा से समझौता कर भाजपाई हो गए है. लोकसभा चुनाव की हार के बाद से सिंधिया इस मुगालते में थे कि 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस उन्हें लोकसभा चुनाव की हार के बाद उपकृत जरूर करेगी, लेकिन राजा और महाराज के अहम ने ऐसा होने नही दिया. जो ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवराज और मोदी को पानी पी पी कर कोसते थे वही अब उनके कुनबे में शामिल हो गये. वही भी लंबी डील के साथ. अब चंद घंटो के भीतर सिंधिया भाजपा की टिकिट पर राज्य सभा सांसद बनने जा रहे है. बहरहाल सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद दिग्गी का कहना है कि उन्हे कांग्रेस राज्य सभा भेजना चाहती थी लेकिन उन्होने बहुत जल्दी ही निर्णय ले लिया.
लेकिन सिंधिया के भाजपा ज्वाइन करने से प्रदेश में सरकार बनाने का लालच भले ही शिवराज सहित अन्य को खुशनुमा बना रहा हो, लेकिन क्या आगे चल कर भाजपाईयो के बीच समन्वय बना रहेगा, इस बात को लेकर राजनैतिक टिप्पणियां भी सोशल मीडिया पर आने लगी है. सिंधिया को विरासत में मिली कांग्रेस की राजनीति ने उन्हे दो बार केंद्र में मंञी बनाया, 18 साल की राजनीति में उन्होने सब कुछ पाया जो कम समय की राजनीति करने वाले किसी भी नेता को मिलना या दिया जाना संभव नही है. लेकिन कांग्रेस पर उपेक्षित करने सहित पब्लिक को दिये गए वचन पञ के वादो को पूरा न करने के आरोप लगाने वाले सिंधिया ने स्वंय उनके संसदीय क्षेञ में किसानो को 47 करोड़ के ऋण मुक्ति प्रमाण पञ वांटे है.
कमलनाथ सरकार सत्ता में तो आई लेकिन 15 साल सत्ता में रही भाजपा सरकार ने खजाना खाली करके दिया. केंद्र से भी जैसी मदद मिलना चाहिये थी वैसी नही मिली, ऐसे में कांग्रेस के महासचिव रहे सिंधिया के आरोप जनहित में सही हो सकते है लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के हालात सही नही थे.
अब बात आती है कांग्रेस की नाव से सीधे भाजपा के जहाज पर छलांग लगाने कि, तो पिछले एक सप्ताह से चल रहे है शीतयुदध के बाद 11 मार्च को 2 बजे नतीजा सामने आ गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के हो गए. लेकिन उनके सदस्यता लेने के दौरान न तो शिवराज नजर आये और नही नरेंद्र सिंह तोमर, सवाल उठने लगे है कि युवा चेहरा और युवाओ की पसंद के साथ साथ पब्लिक के बीच में अक्सर बने रहने वाले ज्योतिरादित्य के भाजपाई होने के बाद प्रदेश भाजपा में क्या असर पड़ने वाला है.
बता दें ग्वालियर चंबल संभाग के भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, यशोधरा राजे सिंधिया, नरोत्तम मिश्रा सहित प्रदेश के पूर्व मुख्यमंञी शिवराज की राजनीति पर असर जरूर पड़ेगा, वर्षो से भाजपा का झंडा बुलंद करने वाले इन नेताओ के सामने अब खुद के कद को बनाये रखने की चुनौती भी है. सभी नेता अपने साथ साथ अपने समर्थको को भी टिकिट दिलाने की पैरवी करेगे तो सिंधिया भी अपने लोगो के लिए खड़े होगे तो टकराव होना स्वाभाविक है.
एक सवाल भाजपा के सामने यह भी खड़ा हो गया है कि फीलहाल तो सिंधिया को राज्य सभा भेजा जा रहा है, लेकिन आने वाले समय में क्या सिंधिया गुना संसदीय सीट से उम्मीदवार होगे, यदि ऐसा हुआ तो वर्तमान सांसद के पी यादव को कहां एडजेस्ट किया जाएगा. कई सवाल है जो भाजपा के लिए मुशीबत बन सकते है, कहा जा रहा है कि जिस अंर्तकलह से कांग्रेस जूझ रही है, क्या आने वाले समय में सिंधिया के बढ़ते ग्राफ के चलते वरिष्ठो और जमे नेताओ का घटता कद भाजपा में कलह पैदा न कर दें.
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