अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस पर स्पेशल – ईश्वर की आराधना है कत्थक  नृत्य :  स्वाति

नवलोक समाचार, भोपाल. राजू प्रजापति  9926536689
भोपाल। में प्रशिक्षित कथक नृत्यांगना और कलाकार एस पी स्वाति ने बताया कि कैसे शास्त्रीय नृत्य वर्षों में विकसित हुए है और क्यो खास है ।अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस जैसा कि आजकल चलन शुरू हुआ है । फ्रेंडशिप-डे, मदर्स-डे, फादर्स-डे, अर्थ-डे आदि तो हम भी आगे बढ़ाते हुए चलते हैं ‘‘वल्र्ड डान्स-डे’’‘‘वल्र्ड डान्स-डे’’ विश्व भर में 29 अप्रैल को मनाया जाता है, भोपाल स्थित प्रशिक्षित कथक नर्तक और कलाकार एस पी स्वाति ने बताया कि  कथक नृत्य को अपनाकर मुझे बहुत सुकून मिलता है। चूँकि वैदिक काल से ही नृत्य को भगवत तुल्य समझा जाता है। जिसकी आराधना भगवान की आराधना के बराबर है।  कथक  नृत्य की उत्पत्ति उत्तरप्रदेश से की गई, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है। कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व कथार्थ से प्राप्त होता है। भारतीय क्लासिकल डांस 8 तरह की है ।और इसी में से एक है ।कत्थक नृत्य। मेरे जैसे नृत्य प्रेमियों के लिए हर दिन अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस  है, जिसे हम पूजते हैं,  मैं ये मानती हूँ ।कि कत्थक  या कोई भी नृत्य सिर्फ आपके मनोरंजन का मार्ग या साधन नही है, ये साधना, मेहनत, ईमानदारी है  जब भगवान शंकर खुश होते है तो वे ‘ताण्डव’’ करते हैं। अपने अंदर की खुशी जाहिर करने के लिए और अपनी आत्मा को शांति  के लिए। नृत्य भी ठीक उस प्रकार है जिस प्रकार आप ध्यान करते है नृत्य भी आपके शरीर, मन व आत्मा तीनों को एक करके खुशी व सकारात्मकता देता है। कुछ लोग इसे भगवान से जुड़ने का माध्यम कहते हैं, कुछ लोग इसी को भगवान बना लेते है।
इस नृत्य की शुरुआत उत्तर भारत के कथाकारों से मानी जातीहै, कथाकार यानी कहानी कहने वाले।इस नृत्य में कुछ एलिमेंट्स पर्शिया और मध्य एशिया के भी हैं। भारत का यह खूबसूरत नृत्य बैले के समतुल्य माना जाता है।इस नृत्य की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें एक कहानी जरूर होती है इस नृत्य को करने वाला अपने अनूठे अंदाज में एक कहानी प्रस्तुत करता है।मुझे अपनी 6 वर्ष की आयु में इस विद्या को सीखने की इच्छा हुई उसके बाद से पिछले 18 वर्षों से में विविध मंचों परअपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हूं।

2018 मेंअंतरराष्ट्रीय खजुराहो डांस फेस्टिवल में भी परफॉर्म कर चुकी हूं।आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित समारोह में पंडित बिरजू महाराज जी के समूह के  साथ गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी स्थापित कर चुकी हूं। मुंबई में बिरजू महाराज  की कार्यशाला में भी सक्रिय योगदान दे चुकी हूं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा आयोजित मध्य प्रदेश यूथ फेस्टिवल में भी सहभागिता कर पुरस्कार ले चुकी हूं।अब इसी क्षेत्र में पीएचडी शोध कार्य करना चाहती हूं तथा रायगढ़ घराने की इस बहुमूल्य विद्या कत्थक को जन-जन तक पहुंचाना चाहती हूं
मैं अपने आपको एक अंतर्राष्ट्रीय कत्थक आर्टिस्ट के रूप में देखना चाहती हूँ। नये प्रयोगों के साथ  शुद्ध नृत्य  सब तक पहुँचे व बाँट सकूँ। मैं कुछ ऐसे प्रयोग करना चाहती हूँ कथक नर्तक और कलाकार एस पी स्वाति ने बताया  “ लोक नृत्यों की बात की जाए तो यह हमें जड़ों से जोड़े रखता है। दुनिया के हर कोने में एक अलग कला और अलग संस्कृति है। हर लोक नृत्य का अपना इतिहास होता है, उसकी परंपरा और उस स्थान की खूबसूरती उससे जुड़ी होती है। किसी संस्कृति का सबसे मनमोहक प्रदर्शन होता है उसके नृत्य में। दुनिया में शायद ही कोई ऐसी सभ्यता और संस्कृति हो जिसमें नृत्य ना हों।
कला क्षेत्र में यह एक विशिष्ट विधा है, जिसे नृत्य दिवस के रूप में मनाना चाहिए।
हमारे देश में नृत्य से संबंधित प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बस जरूरत है तो बुलंद हौसलों व आत्मविश्वास की। फिर सफलता के आसमान में उड़ने से कोई रोक नहीं सकता। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाने से प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता है।
कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया। जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाना था। साथ ही लोगों का ध्यान विश्वस्तर पर इस ओर आकर्षित करना था।
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस  हर साल 29 अप्रैल को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई। यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय थिएटर इंस्टिट्यूट की इंटरनेशल डांस कमेटी ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया। एक महान रिफॉर्मर जीन जार्ज नावेरे के जन्म की स्मृति में यह दिन इंटरनेशल डांस डे के रूप में मनाया जाता है। पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाना था।

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