नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को पद से हटाकर छुट्टी पर भेजने का केंद्र का फैसला मंगलवार को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने वर्मा की बहाली का आदेश दिया। हालांकि, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा उनके खिलाफ की जा रही भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच पूरी होने तक उन्हें बड़े नीतिगत फैसले लेने से रोक दिया। वर्मा और केंद्रीय जांच एजेंसी के नंबर-2 अफसर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एकदूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसके बाद सरकार ने दोनों अफसरों को 23 अक्टूबर को छुट्टी पर भेज दिया था। वर्मा 31 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्मा के खिलाफ आगे का फैसला उच्चस्तरीय समिति करेगी, जो सीबीआई डायरेक्टर का चयन और नियुक्ति करती है। यह फैसला सीवीसी की जांच में आए नतीजों के आधार पर किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि समिति की बैठक एक हफ्ते में बुलाई जानी चाहिए। इस समिति में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस होते हैं।
चीफ जस्टिस ने फैसला लिखा, दूसरी बेंच ने पढ़ा
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली बेंच ने 6 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। हालांकि, मंगलवार को चीफ जस्टिस छुट्टी पर थे ऐसे में फैसला जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की बेंच ने सुनाया। इस मामले में छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फैसले के खिलाफ वर्मा और एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सरकार ने दावा किया था कि सीवीसी की सिफारिश पर निष्पक्ष जांच के लिए दोनों अफसरों को छुट्टी पर भेजा गया।
राव को अंतरिम प्रमुख बनाने का आदेश भी निरस्त

शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ आईपीएस अफसर एम नागेश्वर राव को सीबीआई का कार्यकारी प्रमुख बनाए जाने का केंद्र का आदेश भी निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि सरकार चयन समिति की इजाजत के बगैर सीबीआई निदेशक को पद से हटाए। कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति, पद से हटाने और तबादले को लेकर नियम स्पष्ट हैं। ऐसे में कार्यकाल खत्म होने से पहले आलोक वर्मा को पद से नहीं हटाना चाहिए था।
कांग्रेस का सवाल- क्या मोदीजी वर्मा का कार्यकाल लौटाएंगे?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘‘मोदीजी याद रखिए सरकारें आती-जाती रहती हैं। लेकिन संस्थानों की ईमानदारी हमेशा सलामत रही है। यह आपके लिए लोकतंत्र और संविधान की ताकत का पाठ है। यह सीख है कि आप चाहे जितने निरंकुश हो जाएं, अंत में कानून पकड़ ही लेता है। सीबीआई चीफ को आपके अवैध फैसले के नतीजे तीन महीने तक भुगतने पड़े, क्या आप उनके तीन महीने का कार्यकाल लौटाने की हिम्मत दिखाएंगे?’’
भाजपा ने कहा- इसे राजनीति के चश्मे से न देखें
इस फैसले पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटल ने कहा, ‘‘दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टाब्लिशमेंट एक्ट में दो अलग अलग प्रावधान हैं। पहला प्रावधान है कि सीबीआई डायरेक्टर के ट्रांसफर और छुट्टी पर भेजे जाने के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी की मंजूरी की जरूरी होगी। लेकिन इसमें एक और प्रावधान है कि कुछ भ्रष्टाचार के मामलों पर सीबीआई के ऊपर सीवीसी फैसला ले सकती है। सीवीसी ने उस ताकत का इस्तेमाल सरकार को दो अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने की सलाह देकर किया है। इसको राजनीति के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। सरकार की मंशा पर सवाल उठाना गलत है।’’
माेइन कुरैशी के मामले की जांच से शुरू हुआ रिश्वतखोरी विवाद
अस्थाना मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच कर रहे थे। जांच के दौरान हैदराबाद का सतीश बाबू सना भी घेरे में आया। एजेंसी 50 लाख रुपए के ट्रांजैक्शन के मामले में उसके खिलाफ जांच कर रही थी। सना ने सीबीआई चीफ को भेजी शिकायत में कहा था कि अस्थाना ने इस मामले में उसे क्लीन चिट देने के लिए 5 करोड़ रुपए मांगे थे। हालांकि, 24 अगस्त को अस्थाना ने सीवीसी को पत्र लिखकर डायरेक्टर आलोक वर्मा पर सना से दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था।
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